Sunday, July 6, 2008

वो बचपन के दिन


वो बचपन के दिन जब याद आते हैं,ये पल ये लम्हे मासूम से हो जाते हैं,
वो हलकी सी तक्रारें, वो मीठी सी नोंक-झोंक ,
वो रोज नए बहाने बनाना, वो कल के रूठे दोस्तो को मनाना,
वो स्कूल की घंटी ,वो खेल का मैदान,
वो झील के किनारे आम का बागान,
वो पत्थर उछालकर कच्चे आमों को गिराना,
वो दौड़ की होड़ मे दोस्तो को गिराना-उठाना,
वो सावन के झूले ,वो कोयल की कूक,
वो बारिश की रिमझिम में भीगना-भिगाना,
वो बारिश के पानी से आंगन का भर जाना,
फिर कागज की कस्तियाँ बनाकर पानी मे चलाना !
जाने ये अब कहॉ खो गए, शायद अब ये किसी और के हो गए
वो बचपन के दिन जब याद आते हैं, ये पल ये लम्हे मासूम से हो जाते हैं !

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